Is that UN_Women Sexist ?
संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसा नाम, जिसे शायद ही कोई नहीं जानता होगा । एक ऐसा नाम व संघ जिसे विश्व एवम् मानवता के लिए व् मानवता की रक्षा के किए बनाया गया था । जो आज भी विश्व की एकता , स्वास्थ , प्राकृतिक आपदा , युद्ध जैसे वक़्त पर एक व्यापक काम करते आ रहे है ।
हर देश व उनके नागरिकों विशेषतः पुरुषों की मेहनत की कमाई से अर्जित पैसों से संयुक्त राष्ट्र संघ चलता आया है । संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन ऐसे अनेक संघ है, जिन्हें मानवता के कल्याण के लिए बनाया गया है। उनमें से एक है संयुक्त राष्ट्र महिला संघ , जिसका निर्माण जुलाई 2010 में अधिकतर महिलावादी संघटनों की तरह लिंग समानता के लिए हुआ था।
COVID 19 एक ऐसी महामारी जिसने पूरे विश्व को झंझोड दिया । ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जो इस बीमारी से प्रभावित ना हुआ हो । ऐसे मुश्किल वक्त में भी एक संस्थान ऐसी था । जो Equality अर्थात लिंग समानता के नारे के साथ बनाया गया था मगर, यह संस्थान भी केवल एक महिला वादी सोच की जननी बनकर रह गया व् समाज में पुरुषों के अधिकारों का दमन करने का काम करने लगा है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा एक रिपोर्ट ( मनगढ़ंत ) प्रकाशित करी गई, जिसके अनुसार दक्षिण एशिया के मुख्यतः भारत से कई बहुसंख्यक भ्रामक आख्यानों का प्रचार करने वाले कई टवीट करें गए । जिसमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा दमन और भेदभाव का प्रयास किया गया । इस रिपोर्ट के अनुसार 89% पुरुषों के टवीट #HusbandBurning #DomesticViolenceOnMen #GroomBurning थे और वे दर्शा रहे थे कि महिलाएँ पुरुषों पर अत्याचार कर रही है । ऐसे टवीट जो मूल रूप से स्व-घोषित संगठनों के स्व-घोषित सदस्यों द्वारा साझा किए गए थे। इस रिपोर्ट के अनुसार 90% टवीट जो मुख्यतः भारत की Misogynist organisations ( महिलाओं के विरुद्ध भ्रामक फ़ैलाने वाले संघटन ) Menwelfare Trust व Mensday out के नेताओं या उनके स्वघोषित लोगों द्वारा करें गए थे। इस रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं ने यह पाया कि ऐसे बहुत से टवीट थे, जिनमें कुछ महिलाओं द्वारा अपने पतियों की कथित रूप से हत्या करने की खबरों को ज़ोर दिया गया व यह दर्शाने की कोशिश करी गई कि पुरुष घरेलू हिंसा के असली शिकार है।
एक तरह से इस रिपोर्ट में पुरुषों की आवाज को उठाने वाले पुरूष संगठनों को एक नए शब्द से नवाजा गया Misogynist organisations ( महिलाओं के विरुद्ध भ्रामक फ़ैलाने वाले संघटन ) Men welfare trust व Save family Foundation जैसे संस्थान , जों 48 गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर एक लंबे समय से पुरुषों के हितों की लड़ाई लड़ते आए हैं । इस महामारी के दौर में भी पुरुषों से जुड़ी समस्याओं को अपनी देश व्यापी चलने वाली निशुल्क हेल्पलाइन 8882-498-498 के माध्यम से निरन्तर सहायता करते आ रहे है, उनको निशाना बनाने की कोशिश करी ।
Men's Day Out एक लोकप्रिय संस्थान है, जों पुरुषों की आवाज़ को उठाने का काम लम्बे समय से करती आई है । आप पुरुषों पर होने वाले अत्याचारों व शोषण से जुड़ी खबरों को प्रकाशित करने के लिए जाने जाते है ।
इन सब का दोष सिर्फ इतना है कि ये पुरुषों पर हो रहे अत्याचारों , हत्या , शोषण , यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों को उठाने व समाज को आईना दिखाने का काम करते आए हैं।
जबकि वास्तविक में यह महामारी पुरुषो के लिए सबसे बड़ा काल साबित हुई है।
02 सितम्बर 2020 हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित शोध के अनुसार इस महामारी में मरने वालों में 69% पुरुष थे ।
इस महामारी में घर का आर्थिक बोझ झेलने वाले कई पुरुषों ने अपनी नौकरियां तक खोदी ।
इन सब के बावजूत संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा COVID महामारी में बढ़ती घरेलू हिंसा के मामलों को अपनी झूठी खबरों में मुख्य स्थान देने की कोशिश करता रहा ।
वहीं दूसरी तरफ
08 जून 2020 The Hindu में प्रकाशित खबर के अनुसार केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ऐसी खबरों का खड़न किया था ।
एक तरह से संयुक्त राष्ट्र महिला संघ ने अपने मंसूबों व् पुरुष विरोधी नीतियों से विश्व को गुमराह करने का भरसक प्रयास किया ।
इस रिपोर्ट से कई सवाल सीधे तौर पर संयुक्त राष्ट्र महिला संघ की नीयत पर खड़े होते हैं , आपकी रिपोर्ट के अनुसार 89 % बहुसंख्यक पुरुष टवीट #DomesticViolenceOnMen #MenSucide #HusbandMurder #FakeCases #FakeRape #GroomBurning जैसे गंभीर मुद्दों से जुड़े है , आखिर ये शब्द कैसे महिला विरोधी प्रतीत हो रहे है?
क्या आपकी शब्दावली में पुरुषों पर हो रहे अत्याचारों की आवाज़ उठाने को महिला विरोधी कहां जाता है ?
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के 2019 सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 97613 पुरुषों ने आत्महत्या करी, जिसका सबसे बड़ा कारण पारिवारिक कलह था । इससे संबंधित एक लेख, सरकारी शोधों के साथ मेरे द्वारा प्रकाशित किया गया था जिसका लिंक ये है
ऐसे बहुसंख्यक पुरुष है, जो आए दिन पत्नियों द्वारा घरेलू हिंसा के शिकार हो रहे है । व्यभिचारी पत्नियां अपने प्रेमी से मिलकर पुरुषों को हत्या कर रही है । बड़े पैमाने पर पुरुष एक तरफा कानूनों से त्रस्त आकर आत्महत्या कर रहे है । झूठे छेड़छाड़ और रेप के मुकदमों में पुरुष कई साल जेल या कानूनी लड़ाई में झोक दिए जाते है । अफ़सोस ऐसे मुद्दों पर कोई सरकार शोध करने की चेष्टा नहीं करती । इससे संबंधित एक लेख मेरे द्वारा प्रकाशित किया गया था जिसका लिंक ये है
498A दहेज़ उत्पीड़न अधिनियम जैसे बरसो पुराने दहेज़ कानून अस्तित्व में है , जिसमें 98.2% पुरुष आरोप मुक्त हो जाते है। ऐसे कानून केवल #LegalTerrorism #LegalExtorsion के औजार मात्र रह गए हैं। ऐसे कानूनों के डर के साए , या बच्चों के लिए कई पुरुष जबरदस्ती इस घुटन भरे रिश्ते में रहने को मजबूर हैं । ऐसे कानून दुनिया के सबसे ज्यादा दुरुपयोग होने वाले कानून बनकर रह गए है।
संयुक्त राष्ट्र महिला एक अन्तर्राष्टीर्य संस्थान होते हुए भी , एक लिंग पक्षपाती जंग की अगुआई कर रही है । वोह हर वोह आवाज़ दबाना चाहते है, जो पुरुषों पर हो रही घरेलू हिंसा उत्पीड़न शोषण को उजागर करना चाहती है । पुरुषों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाएं, पुरुषों के हित के साथ-साथ उनके परिवार में मौजूद अन्य महिलाओं के लिए भी बात करते है। बे वजह जनता को ग़ुमराह करने के लिए अंग्रेजी के जटिल शब्दों Misogynist व् Patriarchy शब्दों से खेलना बंद करो। ऐसी रिपोर्ट को देखने से कोई भी आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुँच सकता है कि संयुक्त राष्ट्र महिला Sexist हैं।
ऐसा कहना गलत नहीं होगा समाज या संघ जो जानवरों पेड़-पौधों, पर्यावरण, बच्चों, महिलाओं के लिए आयोग बना सकते हैं मगर पुरुषों के लिए उनके पास कोई नीति नहीं है । ऐसे लोग बराबरी का ढोंग करते हैं । असल में इनका मानवता से कोई लेना देना नहीं है ।
हाल ही में ट्विटर पर #DomesticViolenceOnMen #HusbandMurder #PurushAyog जैसे अनेक टवीट की बढ़ती बुलंद आवाज। वह मांग को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महिला संस्थान इस तरह की एक तरफ़ा रिपोर्ट छाप कर पुरुषों के अधिकारों की आवाज़ को कुचलना चाहते है ।
अब वक्त आ गया है संयुक्त राष्ट्र संघ बराबरी के नारे के साथ पुरुषो के अधिकारों व उनके हक के किए जलद से जलद पुरुष आयोग का घटन करे व् हर देश में पुरुष आयोग बनाने का दिशानिर्देश जारी करे । जिससे विश्व में पुरुषों से जुड़े मुद्दों पर व्यापक काम किया जा सके। पुरुषों के बढ़ते रिकार्ड आत्महत्या पर रोक लगाई जा सके। पुरुषों के साथ होने वाले शोषण उत्पीड़न घरेलू हिंसा , यौन उत्पीड़न , हिंसा पर शोध किया जाना चाहिए। जब संविधान में भेदभाव की जगह नहीं है तो कानूनों में भेदभाव क्यों ?
संयुक्त राष्ट्र महिला जैसे संघ जितना मर्जी अपने पद का दुरुपयोग क्यों ना करले , पुरुषों के अधिकारों के लिए उठी आवाज़ को कभी नहीं दबा सकते।
निचे दिए कमेंट बॉक्स में अवश्य अपने विचार व्यक्त करे।
#StopAbuseMen a movement intends to work for Men's welfare and strongly believe in replacing the word Men/Women by Person and Husband/Wife by Spouse in any Government law or policy. #MenToo are Human, they also have Constitutional Right to Live & Liberty with Dignity (#Article21 ) . #Unfairlaw or Policy can not bring Fairness in any Society, it only kills fairness in Justice System and harmony in Society. #SpeakUpMan. Help Line for abused/distressed Men ( SIF - One): +91-8882498498.
Just see their views. They have been ignoring the facts and they are inclined to be based as women centric organisation and don't give a dqmn fir the balance of equilibrium in men and women. Why can they just specify they are with the women suffering but against the women using the women centric laws as their tool to harm other women. Forget about the men. Still these organization s are becoming lethargic way to function in delution. Pity on them for sure.
ReplyDeleteEye opening fr many if us... Veryvwell written n stuctured
ReplyDeleteBig propaganda is going on.. Men right ke liye bahut powerful step uthana hoga jald hi, poori samjhdaari se..
ReplyDeleteWell written
ReplyDeleteNice article. It shows true reality how injustice happening to men in the name of women empowerment, gender equality, Nari Sashktikaran
ReplyDeleteNice words
ReplyDelete