एक तरफ कलम कहे कानूनी आतंकवाद, वही दूसरी तरफ हर जगह करे पक्षपात

एक तरफ कलम कहे कानूनी आतंकवाद, वही दूसरी तरफ हर जगह करे पक्षपात



बाबा आदम के जमाने की बनी #498A भारतीय दंड संहिता की आईपीसी की धारा जो दहेज प्रताड़ना के लिए थी । आज के ज़माने में हमारे देश में कहीं भी कोई भी वैवाहिक विवाद हो , चाहें किसी भी चीज को लेकर क्यों ना हो, मगर महिलाओं द्वारा दहेज प्रताड़ना के मुकदमे करना आम बात है। वह अपनी बात को रखने के लिए, बदले , पैसे की वसूली करने के लिए या डिवोर्स लेने के लिए इरादे से भी सीधे तौर पर दहेज प्रताड़ना के मुकदमे कर देती हैं।  जिसके चलते सालों पुरुष और उनके परिवारों की प्रताड़ना चलती रहती है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इसे #LegalTerrorism की भी उपाधि दी है, मगर फिर भी कानून बनाने वाले और कानून का पालन करने वालों ने इसके खिलाफ कुछ नहीं किया। आज भी बगैर सबूत के, बगैर तथ्यों के FIR दर्ज करी जाती है। सारी दुनियाँ जानती हैं , पुरुष और उनके परिवारों से मोटी रकम वसूलने के लिए ऐसे कानून का दुरुपयोग लंबे समय से किया जा रहा है। पुलिस से लेकर कानून की हर गलीयारों में पुरुषों को नोचा जाना आम बात है। 41A के नोटिस को लेकर कई सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन बनी और लिखी गई। मगर पुलिस प्रशासन इससे भी खेलना जानता है और पुरुषों को डरा धमका कर उनका शोषण करता आया है।



हाल ही में पहले की तरह एक बार फिर  कोलकाता उच्च न्यायालय ने एक मामले में स्वप्नदास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में कठोर टिप्पणी करते हुए कहा महिलाओं ने भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 498 का ग्रुप करके एक तरह से कानूनी आतंकवाद फैला दिया है। उन्होंने यह भी कहा है कि यह धारा महिलाओं की भलाई के लिए बनाई गई थी लेकिन अब झूठे मामले दर्ज करा कर दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने इसके साथ-साथ पुलिस की कार्यप्रणाली को भी कटघरे में खड़ा किया और उन मानसिकता के प्रति चिंता जाहिर की जो पुरुषों के को बिना सत्य परीक्षण की अपराधी मान लेती है।

सरकारी आंकड़ों को माने तो 498A में 86% से ज्यादा पुरुष वह उनके परिवार के लोग सालों न्यायलय में धक्के खाने के बाद निर्दोष पाए जाते हैं। इन आंकड़ों के अंदर जो मुकदमे आपसी सहमति से खत्म हो जाते है उसका जिक्र नहीं है । अगर उसको जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 99 फ़ीसदी तक पहुंच जाता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की इन कानून का कितने बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है और केवल और केवल पुरुष और उनके परिवारों से फिरौती वसूलने के लिए किया जाता है। 

दहेज अधिनियम कानून यह भी कहता है कि दहेज देना भी अपराध है, मगर जब कोर्ट में या पुलिस के सामने ऐसे दोषी आते हैं जो खुद बोलते हैं कि उन्होंने दहेज दिया। उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करता क्योंकि वह एक " महिला " होती है या उनके परिवार वाले । इससे पता लगता है कि न्यायालय भी, इस आतंकवाद में पूरी भागीदार रख़ता है। उनके हाथ तले यह आतंकवाद फल फूल रहा है।

इसी तरह जब कोई महिला किसी भी कारण वश आत्महत्या करती है, चाहे आत्महत्या का कारण कुछ भी सुसाइड नोट में लिख कर आत्महत्या करे। पति और उनके परिवार वालों दहेज हत्या के आरोप में जेलों में ठूस दिया जाता है । वही दूसरी तरफ अगर पति पत्नी की प्रताड़ना या उसकी धमकियों से परेशान आकर आत्महत्या करता है और अपने सुसाइड नोट में भी अपनी पत्नी या ससुराल वालों का नाम लिखकर आत्महत्या करता है। तो भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती । कोई गिरफ्तारी भी नही होती और ना ही कोई न्यायलय नही जागती। 

पुलिस बगैर किसी तथ्यों बगैर किसी सबूतों के औपचारिकता के तौर पर आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल कर देती है और निर्दोष पुरुष और उनके परिवारों को कोर्ट में जूझने के लिए छोड़ देती है। ऐसा लगता है उनको दंडित करती है कि उन्होंने शादी क्यों करी। ज्यादातर आरोप पत्र को ध्यान से देखा जाए तो उनमें दहेज अधिनियम के अनुसार आरोप भी नहीं होते मगर फिर भी न्यायालय उनके ऊपर सालो ट्रायल चलाती है। न्यायालय निर्णय इंसाफ करने की बजाय, इंतजार करती है की दोनों पार्टियों आपस में समझौता कर ले और मुकदमा अपने आप खत्म हो जाए। ज्यादातर मामलों में शिकायतकर्ता कोर्टों में गवाही देने भी नहीं आती, मगर न्यायालय मूक दर्शी बनकर बैठी रहती है। अगर पति पत्नी के झूठ के खिलाफ 340 सीआरपीसी अर्थात परजूरी का मुकदमा दर्ज करता है, तो भी न्यायालय पत्नी के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करती।  इससे यह साबित होता है इस आतंकवाद को बढ़ाने में न्यायलय का भी इनका कितना बड़ा हाथ है।

एक आम नागरिक होने के नाते, हमारे मन में कुछ प्रश्न खड़े होते है:- 

👉क्या न्यायलय ऐसी कठोर टिप्पणियां करके सांत्वना बटोरने का काम करती है ?

👉क्या सालो से पुरुषो और उनके परिवारों को ऐसे कानूनों के हाथों झुलसते , मरते हुए देखते हुए भी। फिर भी ऐसे कानूनों को नए कानून का नाम देने वाली सरकारें अंधी है ?

👉आखिर कब तक पुरुषो की लाशों पर पुलिस , न्यायलय और कानून निर्मार्ता तमाशा देखते रहेंगे ?

जज साहब हमे टिपड़ी नही, ऐसे कानून रद्द चाहिए। आपकी कलम से इंसाफ चाहिए ना कि सालो कोर्टों में धक्के

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हमे डर आतंकवादी, तालिबान किसी से नही लगता सिर्फ डर लगता है तो इस #LegalExtortion #LegalTerrorism से लगता है। अगर सरकार हमारी रक्षा नहीं कर सकतीं । हमे इस महिला आतंकवाद से नही बचा सकती तो हम किस मुंह से कहे हमे अपने देश पर गर्व है ?


#StopAbuseMen a movement intends to work for Men's welfare and strongly believe in replacing the word Men/Women by Person and Husband/Wife by Spouse in any Government law or policy. #MenToo are Human, they also have Constitutional Right to Live & Liberty with Dignity (#Article21 ) . #Unfairlaw or Policy can not bring Fairness in any Society, it only kills fairness in Justice System and harmony in Society. #SpeakUpMan. Help Line for abused/distressed Men ( SIF - One): +91-8882498498.



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